महाराजा सूरजमल की जीवनी: कौन थे महाराजा सूरजमल
Maharaja Surajmal Biography in Hindi: 13 फरवरी 1707 को भरतपुर के राजा चूड़ामन सिंह के बाद उनके भतीजे बदन सिंह जोकी भरतपुर रियासत के राजा थे। उनको प्रतापी संतान प्राप्त हुई जो कि आगे चलकर एक महान, धीर-वीर और बलवान राजा बना जिसका नाम सूरजमल या सुजान था। वह क्षत्रिय जाट था। 1755 में राजा बदन सिंह ने सूरजमल को राज्य की कमान सौंप दी थी क्योंकि उनकी आंखो की ज्योति कम होने लगी थी। सूरजमल के पिता बदन सिंह ने पुरानी गढ़ी पर लोहागढ़ दुर्ग बनाया। उसने डिंग महलों का निर्माण करवाया और भरतपुर को राज्य की राजधानी बनाया।
महाराजा सूरजमल के जीवन का प्रथम सफल अभियान
1732 में जब वह 25 वर्ष के थे तो उनके पिता ने उनको सोघरिया रुस्तम पर विजय करने के लिए भेजा जिसको सूझबूझ से उन्होंने फतेह कर लिया। भरतपुर जहां था वह सोघरिया जाट रुस्तम के अधिकार में था सन 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली गई
महाराजा सूरजमल का साम्राज्य विस्तार
मराठा, राजपूतों और मुगलों के साथ-साथ इन्होंने राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर जिले, हरियाणा के गुड़गांव, रोहतक, झज्जर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, मेवात जिले, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, फिरोजाबाद, इटावा, हाथरस, एटा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ जिले तक इनका एक विशाल भूखंड पर साम्राज्य था।
महाराजा सूरजमल की सैन्य शक्तियां
- महाराजा सूरजमल एक महान राजा और शक्तिशाली योद्धा था जो कि अपनी सैन्य शक्ति को संतुलित रखता था। उसकी सेना में 15000 घुड़सवार व 25000 पैदल सैनिक थे। सेना बहुत ही तेजस्वी और खूंखार थी।
- महाराजा सूरजमल ने भारत को मजहबी राष्ट्र बनाने के प्रयास को भी असफल कर दिया था जो कि नजीबुद्दौला द्वारा अहमद शाह अब्दाली के सहयोग से किया गया था।
- 1757 में प्लासी युद्ध के वर्ष अहमदशाह अब्दाली दिल्ली की छाती पर पहुंच गया और ब्रिज के तीर्थ का विध्वंस करने के लिए आक्रमण किया। इसकी सेना के आगे सूरजमल की सेना अड़ गई जिससे सूरजमल की सेना के प्राण गए और अब्दाली को वापस जाना पड़ा।
- मराठा शासक सदाशिव राव भाऊ अब्दाली को हराने के उद्देश्य से आगे बढ़ रहा था तो तभी पेशवा बालाजी बाजीराव ने भाऊ को सलाह दी कि उत्तर भारत में एक सूरजमल नामक वीर राजा रहता है। उसका सम्मान करना और युद्ध में उनकी सलाह लेना। लेकिन भाऊ ने सूरजमल से युद्ध संबंधी कोई भी परामर्श नहीं लिया, जिससे उसने अब्दाली के हाथों मुंह की खानी पड़ी और भारी नुकसान उठाना पड़ा। उस युद्ध के बाद लगभग 50 हजार मराठा परिवार सूरजमल के राज्य में ही बस गए। अब्दाली ने मराठों को शरण देने के कारण सूरजमल को चेतावनी भी दी कि वह हमारे शत्रुओं को हमे सौंप दें, लेकिन सूरजमल ने शरण में आए शरणार्थियों का साथ दिया और उनकी रक्षा की जिसके कारण विद्वानों ने उनके इस कार्य के लिए उनको बहुत सरहाया।
- मराठों के साथ महाराजा सूरजमल के मतभेद थे क्योंकि पानीपत की तीसरी लड़ाई से पहले 1760 ई. में सदाशिव राव भाऊ और सूरजमल की एक मस्जिद को लेकर विवाद हो गया था। बात यह थी कि मथुरा में नबी मस्जिद थी जिसको देखकर भाऊ सूरजमल पर आग बबूला हो जाते हैं और कहते हैं आपका यहां इतने दिन से शासन है, लेकिन आपने यह मस्जिद क्यों नहीं तुड़वाई फिर सूरजमल ने कहा मैं सारी उम्र इस इलाके का बादशाह नहीं रहूंगा। कल को मुसलमान आकर हमारे मंदिरों को तोड़ देंगे और वहां पर मस्जिदों का निर्माण करा देंगे। बाद में भाऊ ने लाल किले के दीवाने खास की छत को सोने के लिए गिरवा दिया क्योंकि वह सोना बेचकर सैनिकों की तनख्वा देना चाहता था। सूरजमल ने उनको बहुत मना किया कि आप इसको मत गिराओ आप मेरे से 5 लाख ले लो लेकिन वह नहीं माने। फिर उसमे से भी तीन लाख का ही सोना निकला भाऊ और सूरजमल की कई बातों को लेकर तकरार हुई भाऊ ने यह भी कह दिया था कि मैं दक्षिणी से तुम्हारी ताकत के दम पर नहीं आया हूं।
- मुगल शासन के बीच में ही सूरजमल ने भरतपुर में जाट राज्य को शिखर पर चढ़ाया और भरतपुर को शक्तिशाली राज्य बनाया, जिससे और राजा भी उनसे मदद मांगने लगे। महाराजा सूरजमल वह अजेय योद्धा थे, जिनका परचम विश्व भर में लहराया।
- सूरजमल के मित्र जयपुर के महाराजा जयसिंह की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी युद्ध में महाराजा सूरजमल के सहयोग से उनके बड़े बेटे ईश्वरी सिंह विजयी हुए और जयपुर के सिंहासन पर बैठे।
- दिल्ली पर कब्जा 1753 ई. में सूरजमल ने फिरोजशाह कोटला पर कब्जा किया और मराठों ने जनवरी 1754 से मई 1754 तक भरतपुर के कुम्हेर के किले को घेर कर रखा लेकिन वह इस किले को फतह नहीं कर पाए जिसके फलस्वरूप उन्होंने संधि करनी पड़ी।
- महाराजा सूरजमल ने अफ़गानों को भी हराया था। जिससे सलावत खान, मीर बख्शी और अंसद खान आदि थे।
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महाराजा सूरजमल की उदारता
महाराजा सूरजमल ने 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के द्वारा हार के पश्चात शेष बची सेना के खाने-पीने, कपड़े उनके इलाज की सामग्री की व्यवस्था की। इस युद्ध में 50 हजार मराठा सेना वीरगति को प्राप्त हो गई। इस युद्ध में महारानी किशोरी ने जनता से अन्न इकट्ठा करने की अपील की और जाते हुए बचे सैनिकों को एक एक रुपया, वस्त्र और कुछ अनाज दिया। बहुत से परिवारों को सूरजमल ने यहां भी बसा लिया।
महाराष्ट्र में डांगे भी जाट वंश के बताते हैं और हरियाणा में दांगी जाट भी इनसे संबंधित हैं।
- सूरजमल ने अपने मजबूत क्षेत्रों में किले एवं महल बनवाए, जिसमें लोहागढ़ किला शामिल है। मराठों के पतन के बाद महाराजा सूरजमल ने हाथरस, बनारस, मैनपुरी, फरुखनगर, आगरा, धौलपुर, गाजियाबाद, झज्जर, रोहतक आदि इलाकों को फतह कर लिया था। कहा जाता है “जाट वीर सूरजमल ने हर युद्ध जीता था उसके बिना खुद इतिहास का खजाना रिता था” सूरजमल ने जाटों की ताकत का लोहा मनवाया था।
मृत्यु
“वीरों की सेज युद्ध भूमि है” 25 दिसंबर 1763 ई. को मुगलों ने धोखे से घात लगाकर महान योद्धा की हिडन नदी के तट पर नवाब नजीबुद्दौला के साथ युद्ध में सूरजमल की हत्या कर दी गई। उसके एक साल बाद ही सूरजमल के पुत्र जवाहर सिंह ने बदला लेकर लाल किले को जीत लिया। महाराजा सूरजमल की स्मृति में 25 दिसंबर को हर वर्ष सूरजमल जयंती मनाई जाती है।
कहावत “राजा झुके, झुके मुगल अंग्रेज, झुका गगन सारा। सारे जहां के शिश झुके, झुका न कभी सूरज हमारा।
Maharaja Surajmal Biography In Hindi | |
महाराजा सूरजमल शासन अवधि | 1755 – 1763 ई. |
पिता | बदन सिंह |
माता | महारानी देवकी |
पत्नी | महारानी किशोरी देवी |
पुत्र | 5 (रणजीत सिंह, नवल सिंह, नाहर सिंह, जवाहर सिंह और रतन सिंह) |
घराना | सिनसिनवार जाट |
उपाधि
उनकी वीरता का वर्णन कवि सुदन ने “सुजान चरित्र” में किया। उनको “जाटों का प्लेटो” की उपाधि से नवाजा गया।
महाराजा सूरजमल अपने पीछे 10 करोड़ का सैनिक खजाना छोड़ गया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय कितना संपन्न राज्य था।
सूरजमल से पहले गोकुल जाट नेता अंग्रेजों के मंदिर, मूर्ति भंजक नीति के सख्त खिलाफ थे क्योंकि औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने आगरा और मथुरा के जाटों पर अत्याचार किए। गोकुल राजाराम ने इस अत्याचार का विरोध किया और सिकंदरपुर में अकबर के मकबरे से कीमती सोने चांदी के पत्थरों को उखाड़ दिया। राजा राम के बाद चूड़ामन भी जीवन भर तक मुगलों के साथ संघर्ष करते रहे।
कविताएं
महाराजा सूरजमल पर तीन कविताएं भी लिखी गई है जिसमें प्रथम कविता के रचयिता रामलाल जाणी थे तथा दूसरी और तीसरी के लेखक बलबीर घिटाला तेजा भगत थे।
महाराजा सूरजमल इतने बुद्धिमान थे कि इतिहासकारों ने उनकी तुलना ओडिसस से की थी। सूरजमल ने संघर्ष के रास्ते को अपनाने से पहले शांतिप्रिय उपायों का यत्न किया था।