जाट सेवा संघ का उद्देश्य विभिन्न धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौद्ध) में रह रहे जाट भाइयों एवं विभिन्न प्रदेशों में रह रहे जाट भाइयों के बीच की दूरी प्रदेश की सीमाओं, धर्म की दीवारों, भाषा, गोत्र व संस्कृति के आधार पर जो बढ़ गयी है, आज शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा इन दीवारों को हटाया जा सकता है । जाट आरक्षण की मांग के सम्बन्ध में विभिन्न प्रदेशों की यात्रा करने पर मुझे जाति के नजदीक जाने का सुअवसर मिला । और इसी दौरान दीनबंधु सर छोटूराम, शहीद भगत सिंह, राजा महेंद्र प्रताप (मुरसान, हाथरस उ०प्र०, जिन्होंने काबुल अफगानिस्तान में आजाद हिन्द सरकार व आजाद हिन्द फौज का गठन कर देश आजाद कराया) आदि महापुरुषों का जीवन चरित्र व उनकी विस्तृत विचारधारा का अध्ययन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, वैसे तो सभी जाट महापुरुष चाहे स्व. महाराजा रणजीत सिंह, स्व. महाराजा सूरजमल, स्व. राजा जवाहर सिंह या स्व. राजा नहार सिंह (1857 क्रांति के जनक) चाहे सर छोटूराम के विशवस्त सहयोगी स्व. मुस्लिम जाट सिकंदर हयात खान, स्व. खिज़र हयात खान हो, सभी ने इस कौम को दिशा देने का कार्य इस मिशन की प्रेरणा हमें दीनबंधु सर छोटूराम, शहीद भगत सिंह व राजा महेंद्र प्रताप की विचारधारा से मिली है । चाहे पंजाब के जट सिक्ख भाई हों या जम्मू कश्मीर के मुस्लिम जाट और गुजरात के चौधरी एवं पटेल भाई हों, हम सबका एक ही खून का रिश्ता है और सबकी एक जैसी संस्कृति है । भाषा, पूजा, पद्धति, पहनावा, देश एवं प्रदेश की सीमा भले ही अलग क्यों न हो, सबकी एक जैसी समस्याएं हैं, जैसे कि कृषि पर अधिकतर की निर्भरता और घटती जोत के कारण आर्थिक हालात बद से बदतर होना । कौम के जो लोग पढ़ लिखकर नौकरी या व्यापार में आगे आये हैं, उनका सामाजिक संगठन के रूप में एकत्र होकर केवल क्षेत्रीय, जिला अथवा कॉलोनी स्तर पर संगठन बना कर उसका इस्तेमाल सामाजिक मेलमिलाप तक सीमित रखना । यह एक विचारणीय विषय है कि हम सभी धर्मों में एक विशाल आबादी के रूप में विद्यमान हैं । परन्तु हम अपने आपको एक अल्पसंख्यक जाति के रूप में ही क्यों देखते रहे हैं।
सर्वप्रथम हमें शिक्षा के उद्देश्य को ठीक से समझना होगा। शिक्षा व्यक्ति के विकास का प्रमुख साधन है । शिक्षित व्यक्ति ही देश व दुनिया कि आर्थिक व सामाजिक प्रगति को वास्तविक गति प्रदान कर सकते हैं । स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे मनुष्य कि आंतरिक शक्ति बाह्य रूप से प्रकट होती है अन्यथा पशु व मानव में कोई अंतर नहीं रहता । यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे एक बीज को उपयुक्त वातावरण देकर उसको उपयोगी वृक्ष के रूप में विकसित करना ताकि उसका लाभ समाज को मिल सके । दुनिया के हर देश में शिक्षा को महत्त्व दिया गया है । जिन देशों ने शिक्षा को प्राथमिकता पर मानकर आर्थिक प्रगति की है वही देश दुनिया में विकसित देश कहलाये । भारत में भी शिक्षा का महत्त्व प्राचीन काल से भिन्न-भिन्न रूपों में रहा है । गुरुकुल प्रणाली के माध्यम से बच्चों को एक सफल व उपयोगी मानव बनाने की प्रथा स्थापित की गयी लेकिन वह प्रणाली सबके लिए नहीं थी, कालांतर में मंदिरों, मठों, गुरुद्वारों, मस्जिदों आदि में शिक्षा के विकास का कार्यक्रम चलने लगा । जैसे- जैसे धर्म के अनुपालन में संकीर्णता आयी वैसे-वैसे इन स्थानों पर दी जाने वाली शिक्षा भी संकुचित होती चली गई और शिक्षा का मूल उद्देश्य समाप्त होने लगा।
✅ जाट समाज के चहुँमुखी विकास के लिए दिनबंधु चौ छोटूराम धाम का निर्माणकार्य रोहतक के नज़दीक गाँव जसिया की 25 एकड़ धरती पर युद्धस्तर पर ज़ारी है ।
✅इस संस्थान में जाट समाज के बच्चों को स्कॉलरशिप देकर विभिन्न नौकरियों के लिए उच्चकोटि की कोचिंग दी जाएगी, साथ में बिजनेस एक्सपर्ट समाज के बेरोजगार युवाओं को बिजनेस करने के तौर तरीके समझाकर एक सफल उद्यमी बनाने का प्रयास करेंगे,
✅जाट समाज के गौरवपूर्ण इतिहास पर छात्र शोध करेंगे और समाज को अपने गौरवपूर्ण इतिहास से रूबरू करवाएंगे।
✅इसके साथ ही कृषि अनुसंधान केंद्र, स्पोर्ट्स एकेडमी, मध्यस्था केंद्र, टेक्निकल शिक्षा से संबंधित विषयों पर जोर देकर समाज के बच्चो को हर क्षेत्र में कामयाब करने का उद्देश्य रखा गया है।
✅सभी सम्मानित लोग इसमें अपना आर्थिक सहयोग दे रहे है, ताकि हमारी आने वाली नस्ले और गांव में रहने वाले हमारे भाई और उनके बच्चे पढ़ लिखकर कामयाब हों।